बीज अक्षर बड़े शक्तिशाली होते है । प्रत्येक देवता का अलग बीज अक्षर होता है । क्रीं भगवान श्री कृष्ण का बीज अक्षर है । बंगाल के लोग इसका उच्चारण क्लोंड. और मद्रास के लोग क्लीम करते है । रां श्री राम चंद्र जी का बीज अक्षर है । ऐं सरस्वती जी का बीज अक्षर है । क्रीं काली जी का , गं गणेश जी का स्वं कार्तिकेय का, हौम भगवान शंकर का, श्रीं माता लक्ष्मी जी का, डुं माता दुर्गा का, ह्रीं माया का, इसी को तांत्रिक प्रणव भी कहते हैं । ग्लौं भी गणेश जी बीजाक्षर है ।
बीजाक्षर का अर्थ बड़ा रहस्य्पूर्ण होता है तांत्रिक लोग बीज अक्षरों का प्रयोग बहुत करते है । तंत्र विद्या में बीज अक्षरों का बहुत महत्त्व है उदाहरण के लिए बीज अक्षर हींग को लीजिये इसमें ह , र , इ, और म चार अक्षर है ।
ह – – महादेव जी का घोतक है ।
र – – प्रकृति का घोतक है ।
इ — महामाया का घोतक है ।
म – – सब तरह के कष्टों और यातनाओ का नाश करने का घोतक है ।
पूरे ह्रीं बीज अक्षर का अर्थ हुआ “जैसे अग्नि सब पदार्थो को जलाकर भस्म करता है , वैसे ही देवी जी , जो सारे विश्व को उत्पन्न ,पालन और संहार करती है और जो तीनो तरह के शरीर उत्पन्न ,पालन और संहार करती है हमारे सांसारिक कष्टों का नाश करे और मुझे संसार के बंधन से मुक्त कर दे ।
अपने गुरु से आपको अन्य अनेक बीज अक्षरों के अर्थ ज्ञात होंगे ।
बीजाक्षर का जप करना थोड़ा सा कठिन प्रतीत होते है लकिन इनका प्रभाव बहुत ही अधिक और जल्दी होता है । लेकिन बीजाक्षर मंत्र का उच्चारण सावधानी से करना चाहिए ।
बीजाक्षर मंत्र जप व इनके प्रयोग आप को गुरू की छत्र छाया मे ही करना चाहिये । क्यों की गुरू अपने शिष्य की सारी कठिनाई को दूर कर देता है व भविष्य मे आने वाली सारी आपदाओ को दूर कर देता है । इस लिये आप सारे प्रयोग गुरू के सानिध्य मे ही करे ।